तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया, प्रधानमंत्री ने तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया
नई दिल्ली | तीन
तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की संविधान बेंच ने अपना फैसला सुना दिया।
पांच में से तीन जजों जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस
नरीमन एवं जस्टिस यूयू ललित ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। तीनों जजों ने
जस्टिस नजीर और सीजेआई खेहर की राय का विरोध किया। तीनों जजों ने तीन तलाक को
संविधान के अनुच्छेद 14
का उल्लंघन करार दिया। जजों ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करता
है। यह प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को खत्म कर देती है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने तीन तलाक पर
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे
मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार मिलता है और यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में
एक प्रभावशाली उपाय है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘तीन तलाक पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला ऐतिहासिक है।
इससे मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार मिलता है और यह महिला सशक्तिकरण की दिशा
में एक प्रभावशाली उपाय है’।
यद्यपि जिन दो जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक नहीं
माना, उन्होंने भी इसे गलत
मानते हुए इस मामले में संसद द्वारा कानून बनाने की राय रखी। चीफ जस्टिस ने कहा कि
तीन तलाक संविधान के आर्टिकल 14 (समानता
का अधिकार), 15 (धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के
खिलाफ अधिकार), 21 (मान सम्मान के साथ जीने
का अधिकार) और 25 (पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ और नैतिकता के दायरे में
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं है। चीफ जस्टिस के मुताबिक, यह प्रथा सुन्नी समुदाय का
अभिन्न हिस्सा है और यह प्रथा 1000
सालों से चली आ रही है।
चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस नजीर ने अल्पमत में
दिए फैसले में कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रैक्टिस है, इसलिए कोर्ट इसमें दखल नहीं
देगा। हालांकि दोनों जजों ने माना कि यह पाप है, इसलिए सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और तलाक के लिए कानून बनना
चाहिए। दोनों ने कहा कि तीन तलाक पर छह महीने का स्टे लगाया जाना चाहिए, इस बीच में सरकार कानून बना ले
और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो स्टे जारी रहेगा। खेहर ने यह भी कहा कि
सभी पार्टियों को राजनीति को अलग रखकर इस मामले पर फैसला लेना चाहिए।
फैसले के वक्त कोर्टरूम नंबर 1 पूरी तरह खचाखच भरा हुआ
था।फैसला सुनाए जाते वक्त सभी याचिकाकर्ता और पक्षकार कोर्ट में मौजूद थे।
तीन तलाक के पक्ष में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ
बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत परंपरा की बात है और संविधान
पर्सनल लॉ को संरक्षित करता है। 1400
साल से यह आस्था चली आ रही है। सरकार चाहे तो पर्सनल लॉ को रेग्युलेट करने के लिए
कानून बना सकती है। सिब्बल ने कहा था, 'तीन तलाक पाप है और अवांछित है।
हम भी बदलाव चाहते हैं, लेकिन
पर्सनल लॉ में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए।
फैसला सुनाने वाली बेंच में चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू
ललित और जस्टिस
अब्दुल नजीर शामिल थे, जिससे इस बेंच की खासियत थी कि इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी धर्म को मानने वाले जज शामिल थे।
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