"दानवीर का जगत में, रहता अक्षय मान। तर जातीं हैं पीढ़ियाँ, विधि का यही विधान।।"

भारतीय वाङ्मय में दान का महत्त्व विलक्षण बताया गया है। मनुष्य किसी सद्प्रेरणा से समाज को अपने निमित्त मात्र के द्वारा कृतार्थ करता है, उसे लोकोपकारी कहा गया है। बालिका शिक्षा के संवर्धन हित ऐसी ही लोकोपकारी प्रतिभा का नाम है भामाशाह सेठ श्री राधेश्याम जी चौधरी  जिनका श्री श्री 1008 श्रद्धेय संत श्री नारायण दास जी महाराज द्वारा जनकल्याण हेतु कायाकल्प हुआ।  परम संत श्रद्धेय नारायण दास जी महाराज की विलक्षण प्रेरणा से उन्होंने अपने पूर्वजों की स्मृति में सामोद गांव तथा आसपास के क्षेत्र की बालिकाओं के लिए शिक्षा का एक नवीन सुविधायुक्त केंद्र स्थापित करवाया। लोकार्पण के दौरान तत्कालीन शिक्षामन्त्री श्री गुलाबचन्द कटारिया जी के मन में प्रथम बाल यह विचार आया कि इस प्रकार के दानवीर भामाशाहों का राज्य स्तर पल सम्मान किया जाना चाहिये। इसी के बाद शुरू हुये भामाशाह सम्मान के  सम्मान समारोह में भामाशाह सेठराधेश्याम चौधरी जी को सम्मानीत किया गया। परिवार की यही भामाशाही परंपरा को भामाशाह सेठ श्री राधेश्याम जी चौधरी के सुपुत्रों श्री प्रवीण जी एंव श्री प्रदीप जी तथा सुपौत्र श्री प्रशांत चौधरी के मन में भी स्थापित हुई और उन्होंने श्रेष्ठी श्री राधेश्याम जी चौधरी की स्मृति में विद्यालय भवन में लगभग चालीस लाख रुपये की लागत से पांच कक्षा कक्ष का निर्माण करवा कर उनकी परंपरा को और आगे बढ़ाया। समाज में दान के अक्षय महत्त्व को रेखांकित व स्मृति जीवन्तता हित विद्यालय में दान देने वाले चौधरी परिवार की ओर से श्री प्रदीप चौधरी को  उदयपुर में आयोजित राज्य स्तरीय भामाशाह सम्मान समारोह में राज्य सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा  शिक्षाभूषण सम्मान से अंलकृंत किया गया।इस अवसर पर चौधरी परिवार की ओर से नांमाकित विधालय के प्रधानार्चाय डाॅ.दीपेश जोशी को भी प्रेरक सम्मान  से सम्मानीत किया गया। इस अवसर पर समाजसेवी श्री राजू मंगोडीवाला की भी गरीमामयी उपस्थति रही। 

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